4.11.10

दीपावली

मेरे सभी पाठकों एवं टिप्पणीकर्ताओं को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

23.9.10

माताश्री और पत्नीश्री

बंधुओं, प्रस्तुत है दृश्य-पटलों (slide show) पर मेरी नई कविता.कृपया इसे
full screen mode पर देखिये और आनंद लिजिये.

7.9.10

पति-पत्नी

बंधुओ,अभिवादन.एक रूठे हुऐ पति-पत्नी के मन की बातें हमने सुनी, आपकी क्या राय है पत्नी सही है या पति? अपनी अमूल्य टिप्पणियों द्वारा अवगत करायें.आनंद लिजिये.
पति उवाच
मैं घर आया
वो टी.वी. देख रही थी
उसने मुझसे
चाय तो चाय
पानी तक का नहीं पूछा
मैं गुस्सा गया
टी.वी. बंद कर दिया
अगर वो मुस्कुरा कर
चाय-पानी पूछ लेती
तो...
मैं कहता कोई नहीं
तुम टी.वी. देखो
मैं दस मिनट ठहर जाता हूं
मेरी तो कदर ही नहीं
क्या पत्नी मिली है
पत्नी उवाच
वो घर आये
मैं टी.वी. देख रही थी
उन्होने मुझसे
बात तक नहीं की
टी.वी.बंद कर दिया
मैं गुस्सा गयी
अगर वो मुस्कुरा कर
कहते चाय पिला रही हो क्या?
तो...
मैं सोचती कोई नहीं
कल रीपीट देख लूंगी
चाय बनाती पिलाती
नाल गर्म पकौड़े खिलाती
मेरी तो कदर ही नहीं
क्या पति मिला है

11.8.10

इधर कुंआ उधर खाई

कहते हैं पुरुष के भाग्य को और स्त्री के मन की बात को जानना असंभव हैं.
हो सकता है किंतु स्त्री यदि पत्नी के अवतार में हो तो यह बात सत्य प्रतीत होती है.
उदाहरण के लिये प्रस्तुत है कविराज और कविरानी का यह वार्तालाप. आनंद लिजिये...

- अजी सुनिये
- सुनाईये
- देखिये तो मैंने नई साड़ी पहनी है. कैसे लग रही है ?
- वाह...बहुत सुंदर लग रही है.
- साड़ी ही सुंदर लग रही है. मैं कुछ भी नहीं?
- तुमने साड़ी के बारे में पूछा तो...
- तो अब अपने मुंह से कहूं कि मेरी प्रशंसा करो.
- नहीं मेरे कहने का ये अर्थ नहीं है.
- हूं...
- अच्छा रूठती क्यों हो.सुनो, कविता द्वारा तुम्हारी प्रशंसा करता हूं.
- चलो ठीक है करिये.
- चंदन जैसे बदन पर ये साड़ी लिपटी है...
- ये क्या प्रशंसा हुई ? लिपटी है... साड़ी न हुई नागिन हो गई.
- नागिन कैसे ?
- और क्या चंदन से नाग-नागिन ही तो लिपटते हैं
- वैसे मैं भी तो...चलो छोड़ो...मेरी कविता तो पूरी होने दो न.
- ठीक है करो न.
- चंदन जैसे बदन पर ये निराली साड़ी लिपटी है
- क्या?
- ओह..चंदन जैसे बदन पर निराली साड़ी सजी है
- हां....
- चंदन जैसे बदन पर
निराली साड़ी सजी है
अंग तुम्हारे लग कर
साड़ी खूब खिली है
- अर्थात मैंने पहनी इसलिये ये साड़ी सुंदर लग रही है, वैसे सुंदर नहीं है?
- ओफ्फोह...समझा करो...
- क्या समझूं ? प्रशंसा करनी तो आती नहीं और कवितायें करते हो.
- ओ यार चलो...साड़ी और तुम दोनों ही सुंदर हो.बस्स्स...
- प्रशंसा कर रहे हो या नौकरी भुगता रहे हो.
- अब तुम ही बताओ प्रिये कैसे करूं?
- कविराज हो... तो कुछ फूल-फुंदने लगाईये न.
- क्या लगाऊं तुम्हारे सामने तो मैं ही फूल बन जाता हूं.
- फूल ?
- वही इंगलिश वाला फूल
- वेरी कूल वेरी कूल
- खुश
- बस...हो गई...थोड़ी सी
- तो अभी और बाकी है ?
- जी...अभी फुंदने बाकी है.
- तुम्हारी संतुष्टि के लिये तो स्वर्ग से देवता बुलाने पड़ेंगे.
- जी नहीं स्वर्ग के देवताओं की कोई आवश्यकता नहीं.
- क्यों ?
- क्यों की आप भी तो देवता हो न... मेरे पति देव हो.
- .................
- चुप क्यों हो गये? कुछ कहिये न
- .........................................

28.7.10

अभिनेता

सभी पाठकों को मेरा अभिवादन.प्रस्तुत है मेरी नई कविता.पढ़िये, आनंद लिजिये और हां अपनी टिप्पणी देना न भूलिये
अभिनेता
हीरो जी हाथ जोड़
ताली बजा रहे थे
गर्दन हिला हिला
भोले-भंडारी को
मना रहे थे
तभी एक
झमाका हुआ
महादेव जी
प्रगट हुए
बोले वर मांग
अभिनेता बोला
हे भगवन
आप हैं धन्य
आठ ही दिन
हुए आते
इतनी जल्दी
हो गये प्रसन्न
भगवान बोले
रे मूढ़ मति
मैं प्रसन्न नहीं
दुखी हूं
तू इधर बैठ
नाम मेरा जप रहा है
मेरे सामने ही
सेटिंग कर रहा है
मन में है
हीरोईन का ध्यान
भक्ति नहीं भक्ति की
एक्टिंग कर रहा है
जो मांगना है मांग
चलता बन
किंतु याद रहे
अब कभी आना नही
बोर हो गया
फिर से तेरी घटिया
एक्टिंग दिखाना नहीं

8.6.10

रूठे रूठे पिया...मनाऊं कैसे

कुछ अनिवार्य कारणों से आपसे कई दिनों से मिल नहीं पाया.मेरी नई रचना का आनंद लिजिये.
एक बार हुआ यूं कि कविराज ने अपनी कविरानी से उनके मायके साथ चलने का वचन दिया था किंतु कुछ कारण वश नहीं जा सके. कविरानी बेचारी(?)अकेली चली गई और कविराज से रूठ गईं. कविराज ने उन्हे मनाने फोन लगाया और ये वार्तालाप हुआ.

- कैसी हो?
- अच्छी हूं.
- वो तो तुम हो ही, ये भी कोई कहने की बात है भला ?
- आपने पूछा इस करके बता रही हूं.
- क्या कर रही हो?
- सांस ले रही हूं.
- वो तो लेनी ही पड़ती है.
- कहो तो लेनी बंद कर दूं ?
- ओ यार मेरा ये मतलब नहीं था सांस लेने के अलावा
और क्या कर रही हो?
- पलकें भी झपका रही हूं.
- तुम ऐसी बातें क्यों करती हो
- अच्छा... आप कैसे हैं?
- अच्छा हूं.
- अपने मुंह मियां मिट्ठू
- क्या मैं अच्छा नहीं?
- तुम अच्छॆ नहीं, बहुत गन्दे हो.
- क्यों
- आये क्यों नहीं?
- अरे तुम्हें क्या बताऊं...
- कुछ भी बता दो...बता दो
- हे भगवान
- मुझे देखकर आप भगवान को क्यों याद करते हैं?
- मैं देख कहां रहा हूं केवल तुम्हें सुन रहा हूं.
- अच्छा जी जब मैं आपसे बात कर रही होती हूं तो
आप मुझे कल्पना में नहीं देखते?
- देखते हैं
- तो दिखती हूं न?
- वो तो...वो तो ऐसे है कि मैं भगवान को याद कर धन्यवाद करता हूं.
- काहे का धन्यवाद?
- यही कि हे प्रभु इतनी अच्छी पत्नी दी.
- अब मिल गई है न.बार बार भगवान को कष्ट क्यों देते हैं?
- उनसे प्रार्थना भी तो करता हूं.
- कैसी प्रार्थना?
- धन्यवाद करता हूं और और कहता हूं...
चलो जाने दो यार
- बताईये न...आपको मेरी कसम
- कहता हूं हे भगवान...जैसी अच्छी मिली है इसे वैसी ही अच्छी रखना.
- ओ...ह कोई काम है मुझसे ?
- क्यों?
- मक्खन क्यों लगा रहे हो?
- अब सच कहूं तो तुम विश्वास ही नहीं करती.
- अच्छा अच्छा यानी अभी सच कहा नहीं आपने
- क्यों नहीं कहा?
- क्योंकि मैं विश्वास नहीं करती
- मेरा मतलब है सच कहा तो भी तुम विश्वास क्यों नहीं करती?
- आप चाहते हैं आपकी इस बात पर मैं विश्वास कर लूं?
- मेरी अरजी तेरी मरजी.
- कवि हो न...बातें बनाना खूब आता है.
- मैं बनाता बातें तुम मुझे ही बना रही हो.
- आपको तो भगवान ने बना दिया है.भला मैं क्या बनाऊंगी?
- तुम एक भलेमानस को अमानुष बना रही हो.
- देखिये फोन पर कविता न करिये. पते की बात करिये.
- पते की बात सुन ही लो यदि तुम कल नहीं आई तो
मैं बेपता हो जाऊंगा
- हाय राम
- अभी नहीं तीन दिन बाद कहना.
- ओ मेरे सोना रे सोना रे सोनारे
- आ जाओ अब दूर नहीं रहना रे

23.4.10

जरा-जरा

आईये आज आपको कविराज के दरबार में हुआ राय साब और पंडित जी का वार्तालाप बताता हूं.बीता हुआ समय तो बीत ही गया आज का समय तो भोग-भुगत ही रहे हैं किंतु आने वाला समय कैसा होगा जरा जरा आभास कराता हूं.
जरा-जरा
पंडित जी बोले
कहीं आये न आये
फिल्मों में तो
कलियुग आ गया है
जुलुम हो रहा
संगीत तक में
नंगापन छा गया है
पहले गाने आते थे
छोड़ो छोड़ो मोरी बैंया सांवरे
लाज की मारी
मैं तो पानी पानी हुई जाऊं
और आजकल के गाने
खुला निमंत्रण
जरा जरा किस मी
किस मी...हो जरा जरा
अब बचा क्या
बताईये
राय साब बोले
माना कलियुग आया है
किंतु पूरा कहां छाया है
हमारी राय में
कलियुग की कालिमा
तभी छायेगी
जब नायिकायें
जरा और बढ़ेंगी
जरा और आगे आयेंगी
जो रह गया बाकी
वो भी बतायेंगी
छोड़ देंगी जरा जरा
हो जाये पूरा पूरा
ऐसे गाने गायेंगी

13.4.10

हैद्राबाद में चिठ्ठागोष्ठी ( bloggers meet )

हमारे शहर हैदराबाद में ईंडी ब्लागर्स की ओर से चिठ्ठागोष्ठी (bloggers meet) का आयोजन होटल सेलेक्ट मनोहर (त्रितारांकित) में रविवार 11 April को किया गया. यूनिवर्सल वालों ने इसे स्पांसर किया था.
इसी की एक छोटी सी रपट प्रस्तुत है. लगभग 150 ब्लागर्स पांच से पचपन की आयु तक के पधारे.ढाई बजे तक सभी वातानूकूलित सभागृह में अपनी अपनी सीटों पर जम गये.अधिकतर इंगलिश में लिखने वाले थे कुछ तेलुगु वाले भी थे किंतु हिंदी ब्लाग वाले केवल हम ही थे.
कार्यक्रम प्रारंभ हुआ ईंडीब्लागर्स की टीम ने अपना परिचय दिया. स्थानीय संयोजक विनीत उर्फ"Hyderabad Rocker" ने भी दो शब्द कहे. फिर slide show शुरु हुआ.
एक ब्लागर ने जो मूल रूप से हैद्राबादी हैं और प्रस्तुत में जर्मनी में है एक बढ़िया विडियो सभी ब्लागर्स के लिये भेजा जिसमे श्री हिटलर को मजाकिया अंदाज में ब्लाग्स की चर्चा करते हुए दर्शाया गया था.सभी ने आनंद लिया.
अब 30 seconds of fame प्रारंभ हुआ जिसमें प्रत्येक ब्लागर को तीस सेकेंडस में अपनी बात रखनी थी. कई लोग झिझके, कुछ अधिक आत्मविश्वासी थे .प्रत्येक ब्लागर ने अपना परिचय दिया, अपने ब्लाग के बारे में बताया, उपस्थित जनों ने तालियां बजा कर उत्साह वर्धन किया.
दो-चार ब्लाग वाले तो कई थे किंतु एक सज्जन ने बताया कि उनके ब्लाग्स की संख्या पचास है. हमने सोचा इन्हें और कुछ करने का समय कैसे मिल पाता होगा. हमने भी अपना परिचय आंग्ल भाषा में ही कुछ इस तरह दिया,












Hi every body... myself vijayprakash. i am only eight months old...of course in blogging. Many bloggers among us have more than one blog...i am poor in that sense... i have only one blog...aapakihamari.blogspot.com...i write humorous poems...please visit.. you'll like them instantly. thanks
सोचा अगर हिंदी में परिचय देंगे तो तालियां कम बजेगी. और बजी हमारे परिचय पर अच्छी तालियां बजी.सारों ने अपना परिचय करा दिया.


अब मजेदार "मेल-जोल सेशन"प्रारंभ हुआ.प्रत्येक ब्लागर को कैलेंडर की तरह का कोरा जाड़ा कागद और एक स्केच पेन दिया गया.जैसा कहा गया उसी प्रकार सभी ने कागद को अपने अपनी पीठ पर लटकाया और सारे ब्लागर्स एक दूसरे की पीठ पर अपने अपने संदेश लिखने लगे.परिचय और hand shake होने लगे. हम भी hi करने लगे और प्रश्न पूछने लगे -(know hindi) नो हिन्दी, है न मजे की बात उत्तर भी ठीक यही मिलता, (no hindi) नो हिन्दी.
हमने कईयों की पीठ पर, कईयों ने हमारी पीठ पर संदेशे लिखे
इसके बाद quiz session शुरु हुआ और इंटरनेट से संबंधित कई प्रश्न पूछे गये, सही उत्तर वालों को पुरस्कार मिले.यह सेशन भी बहुत मजेदार रहा.
लगभग पांच बजे उंची चाय जी हां high tea का शाब्दिक अनुवाद, जिसमें दही भल्ले, मिनी बर्गर, गुलाब जामुन और हां चाय काफी भी काफी थी, सभी ने चर्वण किया.
बाद में चर्चा हुई और समापन में सभी को एक टी-शर्ट उपहार दी गई.तो बंधुओं इस चिठ्ठागोष्ठी में हमने बहुत आनंद लिया और कई नये मित्र बनाये.

6.4.10

नमक सत्याग्रह

नमक सत्याग्रह
आप सभी जानते है कि गांधी जी ने नमक सत्याग्रह किया था अंग्रेज सरकार को झुका कर छठी का नमक याद दिलाया था. आज ही के दिन 1930 को इस सत्याग्रह का समापन हुआ था. उस सत्याग्रह को पूरी महत्ता देते हुए हम अपने पाठकों को एक और नमक सत्याग्रह के बारे में बता रहे हैं, इसे किसने ने किया और कौन झुका...पढ़िये और आनंद लिजिये.

पहला दिन
कविराज - दाल में थोड़ा नमक अधिक लग रहा है.
कविरानी - ( चख कर) मुझे तो सही लगता है.
- तुम्हे लगने से क्या होता है ? मुझे लगना चाहिये.
- सभी ने दाल खाई किंतु किसी ने नहीं कहा
- तो क्या मेरा स्वाद बिगड़ गया है.
- अब मैं कैसे कहूं.
- क्या मतलब?
- जी कुछ नहीं
- एक बात समझ लो, अधिक नमक स्वास्थ्य के लिये ठीक नहीं होता.
- समझ गई जी कल से कम डलेगा.
कविराज - हूं..उ उ उ उ उ... उ...
कविरानी - .................................
दूसरा दिन
कविराज - आज दाल और सब्जी दोनों ही फीकी है.
कविरानी - आप ही ने कहा था कि नमक कम...
- तो इतना कम थोड़े ही कहा था.
- मैंने तो केवल थोड़ा सा कम...
- अरे यार ज्यादा कम हो गया है.
- जी मैंने तो...
- लगता है तुम्हे फिर से A B C D सीखनी होगी.
- जी कभी कभी हो जाती है गलती
कविराज - ऐसे कैसे हो जाती है ?
कविरानी - ..................
तीसरा दिन
कविराज - ओफ्फो... आज तो हद हो गई.
कविरानी - क्या हो गया?
- इस दाल में नमक है ही नहीं.
- सारी...भूल गयी हूंगी.
- वाह-वाह...शाबाश...
- अब क्या हुआ ?
- क्या हुआ ? चखो इसे, सब्जी में नमक दुगना है.
- हाय राम, शायद दो बार डल गया.
- अब मैं क्या करूं ?
- अब मैं क्या कहूं ?
- यही कहो रहने दिजिये, फिर फेंक दोगी.
पता है सब्जी मेवे के भाव और तेल घी के भाव आ रहा है.
कविरानी- ..................................
- बस मुंह बंद कर लेती हो....कुछ तो कहो.बताओ कैसे खांऊ?
- आप गुस्सा हो जायेंगे.
- नहीं नहीं बताओ तो सही.
- दाल में नहीं है सब्जी में दुगुना है दोनों को मिला लो, नमक सही हो जाऐगा.
- अच्छा सुझाव है. हूंउउ...ऐसे मिला कर कोई खाता है भला ?
- भीतर तो सब मिलेगा न, बाहर मिल जाये तो क्या हुआ.
कविराज - धन्य हो...
कविरानी - ................................................
चौथा दिन
कविराज - आज क्या बात है ? दाल और सब्जी सब में नमक बिल्कुल सही है.
कविरानी - (मुस्कुराते हुए) अब मैं क्या कहूं.
- यही कहो न...हो जाती है कभी कभी...गलती
- आपका भी जवाब नहीं
- क्यों ?
- कम हो तो सुनाते हो, ज्यादा हो तो सुनाते हो, सही हो तो भी सुनाते हो...
- आदत नहीं न है ऐसा सही खाने की
- आपको तो आदत मुझे ही कुछ न कुछ कहने की है. है न ?
कविराज - छोड़ो यार मैं तो हंसी कर रहा हूं.
कविरानी - ..........................................
पांचवा दिन
कविराज - ओफ्फोह...जरा सुनना
कविरानी - जी कहिये
- आज न तो दाल में नमक है न ही सब्जी में.
- जी हां नहीं है पता है.
- क्या मतलब ?
- जान बूझ कर नहीं डाला.
- हांये..क्यों नहीं डाला ?
- देखिये इस कम ज्यादा के चक्कर से दुखी होकर सोचा कि...
- सोचा कि बिना नमक का खिला दूं.
- जी नहीं.ये नमकदानी रखी है.जितना आपको लगता है, ले लिजिये.
- मुझसे हंसी कर रही हो ?
- ये हंसी नहीं, नमक सत्याग्रह है.प्रति दिन भोजन बिना नमक ही बनेगा.बस्स
कविराज - जो भी हो ठीक नहीं कर रही हो.
कविरानी - ..................................
छठा दिन
कविराज - एक बात कहना चाहता हूं
कविरानी - कहिये न
- देखो पति की बातों का बुरा नहीं मनाते.
- तो
- तुम्हे अच्छा नहीं लगा न, आगे से मैं नमक के बारे में कुछ भी नहीं कहूंगा.बस ये...
- नमक सत्याग्रह वाली बात... आज समाप्त...वो तो हंसी की थी.
- तो क्या ...
कविरानी - चखिये न...नमक बराबर है.
कविराज -.......................................

27.3.10

शतरंज और चीयर गर्ल्स

मित्रों आज आपको कविराज की मंडली में लिये चलते हैं. क्रिकेट की चर्चा चल रही हैं.भोलूराम जी बोले आजकल हर समय, हर शहर क्रिकेट ही क्रिकेट चल रहा है. दूसरे सारे खेल पृष्ठभूमि में चले गये हैं.
लाला छज्जूमल चहके अजी पहले तो दिन में होता था आजकल तो रात में भी होता है.
प्रेम पत्रकार ने चुटकी ली लाला जी आप भी रात में मैच देखते हैं ? लाला जी बोले अजी एक पारी देखते हैं. दूसरी पारी की ललाईन परमीशन नहीं देती. प्रेम पत्रकार ने कहा भाभी जी को वो नाचने वाली लड़कियां पसंद नहीं आती होगी फिर भी शुक्र है आपको एक पारी की तो परमीशन दे रही है.
सारी मंडली हंसने लगी. लाला जी झेंप गये.
तभी राय साब ने कहा दूसरे खेलों को भी बढ़ावा देने की योजनाओं पर काम चल रहा है.आगे...
शतरंज और चीयर गर्ल्स
राय साहब बोले
खेल मंत्रालय ने राय मांगी है
कहे अनुसार हमने
चतुरंग अर्थात Chess को
लोकप्रिय करने योजना बनाई है
हमने कहा सुनाईये
बोले सभी जानते हैं
चेस एक नीरस खेल है
खिलाडी मुंह झुकाये
आगे की पीछे की
चालें सोचते रहते हैं
दर्शक भी
मौन साधे बैठे रहते है
सौ बात की एक बात
इसमें उत्साह नहीं है
लाना होगा
चेस को पोपुलर करना है तो
उत्साह बालाओं को
घुसाना होगा
हम बोले उत्साह-बालायें ?
बोले यार Cheer girls
हमने पूछा कैसे घुसाओगे?
बोले
खिलाडियो के पीछे
काले मोहरों के पीछे गोरी
सफ़ेद मोहरों के पीछे श्यामल
दो चार उत्साह बालायें होगी
हमने पूछा काली-गोरी क्यों ?
बोले इससे रंग भेद मिटेगा
पूछा करेंगी क्या?
बोले वही जो क्रिकेट में कर रही हैं
जैसे ही प्यादा गिरेगा
बैंड बजेगा ये मुस्कुरायेंगी
पतली गर्दनें अदा से घुमायेगी
घोड़ा जायेगा तो ये भी
कूदेंगी उछलेंगी
ऊंट जायेगा तो झुकेंगी
सीधी हो जायेंगी
ऊंट की चाल दिखायेंगी
हाथी जाने पर हाथी की तरह झूमेंगी
थोड़े बहुत जलवे दिखायेंगी
वजीर जाने पर ये इतना हिलेंगी
इतना हिलेंगी
सारे दर्शकों को हिला देंगी
राजा जाने पर वे उछलेंगी
अपने हाथ छत से लगा देंगी
हमने कहा
ऐसे तो खिलाडियों का ध्यान बंटेगा
बोले
जो विषम परिस्थितियों में खेले
वही तो खिलाड़ी होता है
वैसे इसका प्रबंध कर देंगे
उनके कानों में रुई भर देंगे
प्लान कैसा है
हम बोले अति सुन्दर
कुछ दिनों के पश्चात
हमने पूछा क्या हुआ ?
राय साब बोले
फाईल मंत्रालय जा चुकी है
हमने तो दे दी अब जनता की राय
मांगी जा रही है
बंधुओ आप भी
समझिये सोचिये
खेल का या उत्साह्बालाओं का
किसी न किसी का
भला किजिये
जो भी हो अपनी राय
अवश्य दिजिये

16.3.10

देखना-सुनना

सभी चिट्ठाकर्ता, टिप्पणीकर्ता साथियों को नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
प्रस्तुत है मेरी एक कविता, आनंद लिजिये.
देखना-सुनना                   
बतियाने पहुंचे तो देखा  
कविराज  
समाधि मुद्रा मे बैठे
 शुद्ध आंसू छाप
सास बहू टाईप
डायलोग सुन रहे थे
उनकीं आंखें 
जमी थीं टी.वी.पर
पूरे के पूरे
एपिसोड में थे
हमने पूछा क्या
गजब कर रहे हो
नारियों के देखने वाले
सिरियल देख रहे हो
 लगता है
भाभी जी नहीं है
इसी मिस 
उन्हे याद कर रहे हो 
कविराज बोले 
वो सिरियल नहीं देखती 
कुछ न कुछ कर रही होगी
हम बात को समझ रहे थे 
तभी भाभी जी प्रकट हुई 
हमने पूछा भाभीजी
आप इतना हिट सिरियल 
मिस कर रही हैं
उपर से 
घरेलू काम कर रही हैं 
  आश्चर्य है 
  प्रसन्न भी हो रही हैं
क्या कोई नया व्रत  
कोई नई हवा चल रही है 
वो बोली भाईसाहब 
काम काज का तो कोई नहीं
आराम से करती हूं
क्योंकि
बुद्धू बक्से से दूर रहती हूं
फिर भी कृपा से इनकी  
मिस नहीं होता
मेरा कोई अवड़ता सिरियल 
पहले ये देखते हैं 
क्या घटा क्या बढ़ा 
रात में मुझे
सारे का सारा बता देते हैं
पूरा एपिसोड सुना देते हैं
कभी सुनिये तो सही 
सच कहती हूं
आप देखना भूल जायेंगे
  इतना अच्छा 
इतना अच्छा सुनाते हैं
आगे-पीछे
 हर बात डिटेल में बताते हैं
कवि हैं ना
मसाला इधर-उधर का 
बहुत मिलाते हैं
मजा आ जाता है
आधे घन्टे का एपिसोड
दो घन्टे में सुनाते हैं

27.2.10

आपको होली की शुभकामनाओं सहित ये कविता अर्पित है.
होली ससुराली
हमने एक बार कविराज से कहा अपनी किसी अविस्मरणीय होली के बारे में बताईये. बोले यार ससुराल की और वह भी पहली होली वह होली ही अविस्मरणीय और साथ ही मधुर भी होती है. हम बोले सुनाईये न. बोले उस होली को यार लोगों ने भंग पिला दी थी और बहुत चढ़ गई थी.हम पूरी मस्ती में थे और पहुंच गये ससुराल...
...................
थी निराली
पहली हमारी
होली ससुराली
उस होली पर
मेरी उन्होने
हाय
सकुचाते लजाते
लगाया था गुलाल
हमने भी उनके
लाल किये थे गाल
आगे न पूछो
बज उठी तालियां
निकल आई हमारी
छिपी हुई सालियां
हम तो बंधु
सालियों के
संग से रंग से
गुलाब की तरह
खिल रहे थे
भोलेबाबा की
कृपा से
हंस हंस हंस
थोडा अधिक ही
हिल रहे थे
तभी हमारा मन
मौज में आया
सालियों को
हमने थोड़ा सा
"रंग बरसे" सुनाया
ठीक उसी समय
अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक सा
हमारा साला बाबू
आया
इधर देखा उधर देखा
बोला जीजा जी
आप तो कविराज हैं
रंग और ढंग की
तुक मिलाईये
इस होली को यादगार बनाईये
रंग में थोड़ा ढंग लाईये
हम उसका संकेत समझे
और बोले
साला बाबू हमने
रंग की तुक ढंग से नही
भंग से मिलायी है
छोड़ों तुकबाजी
मस्ती छाई है
इधर वो भी कम नहीं था
हाय
वो साला भी कवि था
उसने मेरा हाथ
हां बंधु अपना नहीं
मेरा हाथ पकड़ा
और
अपने गले में डाला
बोला जीजाजी
चलिये बाजार जाते हैं
भंग के रंग में
और रंग चढ़ाते हैं
यहां की
प्रसिद्ध रबड़ी खाते हैं.
हम बोले फिर
बोला फिर हम दोनों
कवि-कवि
साथ साथ
होली मनायेंगे
कविताऐं
सुनेंगे सुनायेंगे
मैंने विचारा
साले का क्या करूं?
कुछ नहीं हो सका
बोला चलिये, चलते हैं
सोचा क्यूं ये साले
सताते हैं सालते हैं
साले तो साले ही हैं
रंग में भंग डालते हैं
रंग में भंग डालते हैं

23.2.10

1411 से विश्व-बाघ सभा तक

कविराज की मंडली सजी थी .हमने पूछा आजकल 1411 की बहुत चर्चा चल रही है ये है क्या ?
कविराज ने कहा बंधु ये उन बाघों की संख्या बताई जा रही है जो शिकारियों की नजर से बच गये और हैं.  तभी प्रेम पत्रकार ने कहा मैं आज ही सुंदरवन से बाघों का "वर्ल्ड कन्वेंशन" कवर कर आ रहा हूं और ...  मंडली ने एक स्वर से कहा प्रेम जी हमें वहां की "फर्स्ट हैंड इन्फोर्मेशन" दिजिऐ न.                   
प्रेम पत्रकार ने सिर हिलाया और बोले जिस प्रकार हम लोगों में चर्चा हो रही है ठीक  उसी प्रकार बाघों में भी कम जनसंख्या का हल्ला हो रहा है. इसी विषय पर वो असाधारण सभा बुलाईगई थी.  बहुत सारे बाघ घेरा बना विराजमान थे.
अध्यक्ष बाघ ने अपने संबोधन में कहा. कुछ समय पूर्व राजे महाराजे थे जो जब जी चाहे मनोरंजन के लिये हमारी हत्या कर देते थे.
प्रभुकृपा से वो आप ही समाप्त हो गये. किंतु फिर भी हमारी आबादी उतनी बढ़ नहीं रही. मेरे विचार से इसका कारण है हमारे रहने के स्थान जंगल जो नहीं के बराबर हैं. और जो है वहां भी मानव घुसपैठ कर रहे हैं. यदि हम कोई प्रतिरोध करते हैं तो हमें मानवभक्षी कह मार दिया जाता  है. मैं पूछता हूं क्या हमारी आबादी "जू" में बढ़ेगी? या हम फ्लैटों में रहेंगे?
एक अतिथि साईबेरियन बाघ जो बहुत तगड़ा था बोला सच कहा आपने. रूस में तो हम बढ़ रहे है क्योंकि उधर के जंगलों में मानव की घुसपैठ बहुत कम है.
अध्यक्ष बाघ ने कहा अब जो समस्यायें आप "फेस" कर रहे हो बताऐं.
चीन से आया बाघ बोला अध्यक्ष जी वहां तो हम लगभग पचास ही रह गये हैं कारण कि उधर हमें कूट पीस कर हमारी दवाईयां बना मर्दानगी बढा़ई जा रही हैं."एक "लोकल" बाघ दहाड़ा, यह मानव मचान पर बैठ छल से हमारी हत्या करता है क्या यही है इसकी मर्दानगी? एक और बाघ बोला हम तो मानव को छेड़ते ही नहीं बल्कि उससे कन्नी काटते हैं और ये... ये हमें मार कर हमारे मुंह से दीवार सजाता है. अपने बाप-दादा की मुंडियां क्यों नहीं लगाता?  सभी बाघों ने "शेम-शेम"कहा. तत्पश्चात अध्यक्ष ने कहा कि कुछ भी हो किंतु यह गर्व का विषय है कि आज संसार के सारे बाघों की संख्या के लगभग साठ प्रतिशत बाघ यहां भारत में विचरण कर रहे हैं. किंतु फिर भी हम कम हैं अतः और आबादी बढ़ाने हेतु मैं आप सभी के सुझाव आमंत्रित करता हूं.
एक अधेड़ बाघ बोला प्रत्येक बाघ को एक से अधिक साथी रखने की छूट होनी चाहिये. इस पर एक सयाना बाघ बोला इससे हमारी "क्वांटिटी" तो बढ़ जायेगी किंतु "क्वालिटी" समाप्त हो्ने का डर है.एक बाघ ने कहा हमारे चमड़े का उपयोग सजावट के लिये न हो इसका कोई उपाय होना आवश्यक है.एक बोला आजकल तो हमारी हड्डियों से भी शराब बनाई जा रही है.दूसरे ने कहा जैसे गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग होता है क्यों न वैसे ही हमारे मल-मूत्र का भी कोई उपयोग मानव को सुझाया जाऐ ताकि वह इन के लिये ही सही, हमें अवश्य पालेगा.
इस तरह कई प्रकार के वाद-विवाद एवं सुझावों के पश्चात अंत में सर्व सम्मति से ये प्रस्ताव पारित हुआ - हम सभी बाघ मानवों से अनुरोध करते हैं कि हमारे मृत शरीर या अंगों का सजावट
, दवाई या शराब में प्रयोग न करें न ही होने दें .भारत के वन विभाग से हमारा नम्र निवेदन हैं कि यदि वो "सिरियसली" हमारी जनसंख्या बढ़ाना चाहते हैं तो शिकारियों (?) यानी poachers को समाप्त करें और जनता से सहयोग ले जंगल बचायें. सभी बाघों ने दहाड़ कर अपनी सहमति जताई .                  
उपसंहार
एक मसखरे बाघ ने जंगल के संदर्भ में कहा क्यों न हम मुंबई चलें वहां की आबो-हवा बाघ-बघेलों को बहुत रास आ रही है, सुना है कि उधर हम बहु-संख्यक हो गये हैं.
इस पर एक इतिहासज्ञ बाघ ने कहा बेटे आपकी पीढ़ी को वह प्रसंग पता नहीं जिसके कारण आज बाघ मुंबई में फल-फूल रहे हैं. यदि अध्यक्ष जी की आज्ञा हो तो... अध्यक्ष जी ने सिर हिलाया और इतिहासज्ञ बाघ बोला- कई वर्ष पूर्व एक गुरु महाराज के तीन शिष्य सिख-पढ़ अपने अपने ठिकाने जा रहे थे.
मुंबई में उन्हें काल-कवलित बाघ का एक पिंजर दिखा जो सन साठ से पड़ा सड़ रहा था. तीनों ने सोचा क्यों न अपने ज्ञान का "प्रैक्टिकल" किया जाये. पहले शिष्य ने जो चीन के रेशमी लाल वस्त्र पहनता था बोला इस बाघ के पिंजर को मैं अपने ज्ञान के बल पर खड़ा कर सकता हूं. दूसरा शिष्य जो भगवे रंग से रंगी खद्दर पहनता था बोला मैं इस के खड़े पिंजर पर मांस-चमड़ा मढ़ सकता हूं.तीसरे शिष्य ने जो श्वेत खद्दर पहनता था कहा तुम सबसे मेरा ज्ञान उंचा है. मैं इस में प्राण फूंक सकता हूं.अब पहले और दूसरे ने मंत्र पढ़े .पहले बिखरी हुई हड्डियों से बाघ का ढांचा बना फिर उस पर मांस-चमड़ा प्रकट हुआ किंतु फिर भी बाघ निर्जीव ही था.अब तीसरे की बारी थी यहां पहले और दूसरे ने उसे सलाह दी कि भैय्या विचार लो, इसमें प्राण फूंकना बहुत "रिस्की" है. किंतु खद्दरधारी ने इनकी एक न मानी, सोचा "कम्पीटिशन" को समाप्त करने का यह अच्छा उपाय है.
उसने कुछ भाषण, वक्त्व्य, मंत्र आदि शुरु किये. लाल और भगवे तो खतरा भांप समय रहते दौड़ कर एक वृक्ष पर चड़ गये. इधर बाघ जीवित हो उठा. खद्दरधारी अपनी सफलता से आत्ममुग्ध हो ही रहा था कि बाघ ने पंजा बढ़ाया और... यहां प्रेम पत्रकार ने छोटा सा ब्रेक लिया. सभी ने पूछा और आगे?
प्रेम ने कहा आगे का तो आप सभी जानते ही हैं.







12.2.10

भोले बाबा और नेताजी

आज महा शिवरात्रि है. देवों के देव महादेव के इस पर्व पर हमारे प्रेम पत्रकार ने एक परम शिवभक्त नेता जी का साक्षात्कार लिया.
(नोट-नेताजी ने भगवान शंकर जी का प्रसाद लिया हुआ था)
प्रस्तुत है कुछ झलकियां
- जय शंकर नेता जी
- जय शंकर जय शंकर प्रेम जी, आइये, विराजिये.
- धन्यवाद जी,और कैसे चल रही है आपकी राजनीति.
- अजी कृपा है भोले बाबा की.आप सुनाईये
- नेता जी आप भोले बाबा के परम भक्त कहाते है.आज महा शिवरात्रि के पावन अवसर पर आपसे पूछना चाहूंगा कि आपने शिव बाबा से क्या क्या सीखा?
- अजी वही तो हमारे प्रेरेणा स्त्रोत हैं
- कैसे?
- हमारे भोले बाबा, भक्त जो चाहे मांगे, विचारते नहीं, दे देते हैं. हम भी भोले बाबा जैसे ही हैं.अब देखिये ठेकेदार, सप्लायर, रिश्तेदार-नातेदार, हमारे पक्ष के साथी आदि आदि इतने लोग हमसे कुछ न कुछ मांगते ही रहते है और हम भी परिणाम की चिंता किये बिना प्रदान कर देते हैं.
- वे तो हलाहल विष धारण कर नील-कंठ कहाते है.
- हमने भी तो विपक्ष-मिडिया के आरोपों को विष समझ गले से नीचे उतरने ही नहीं दिया.
- उनके भाल पर चंद्र देव शोभित हैं
- हमारे सिर पर भी पद का मुकुट है.
- वो सर्प की माला पहनते हैं.
- हम भी तो राजनीति में आवश्यकता पड़ने पर विपक्ष को गले लगाते हैं.
- उनके साथ भूत-पिशाचों की सेना है.
- हम भी कुछ इसी प्रकार की सेना रखते हैं जो चुनावों के समय दृष्टिगोचर होती है.
- उनका वाहन नंदी है.
- हम भी नौकरशाही की सवारी करते हैं.
- वह समाधि भी लगाते हैं
- अजी हम भी विपक्ष में आने पर बहुत तपस्या करते हैं.
- वह कैलाश पर रहते हैं
- हम भी तो ए.सी. में रहते हैं.
- उन्होनें कामदेव को भस्म किया था.
- हम भी फाईलें भस्म करते हैं.
- वह भांग-धतूरा पचा लेते हैं.
- हम भी बहुत कुछ पचा लेते हैं.
- वह तीसरा नेत्र रखते हैं
- हम भी सी.बी.आई.रखते हैं.
- वह डमरू बजाते हैं
- हमारा पालतू मिडिया भी बहुत बजता है.
- वह त्रिशूल रखते हैं
- हम भी अपने पास कायदे-कानून रखते हैं.
- वह तांडव करते हैं
- अजी आपको लोक-सभा आने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ क्या? कभी आईये न.
- उन्होनें एक समय अपने ससुर का संहार किया था.
- अजी तो सत्ता में आने के बाद हम जनता जनार्दन के साथ क्या करते हैं?
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- अजी कुछ और पूछिये
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