एक बार हमने कविराज से पूछा नौ रसों से आपने अपनी कविताओं के लिये हास्य रस ही क्यों चुना?
कविराज बोले हास्य रस लिखना बहुत कठिन है विशेषता यह है कि यह रस हर रस में रम जाता है
और रचना में हमें, श्रोता और पाठक सबको रस आ जाता है, इसीलिये हम इस रस का रस लेते-देते हैं.हमने कहा कोई उदाहरण दिजिये कविराज बोले मेरी ये कविता पढ़िये.
इसमें हमने श्रृंगार रस में हास्य रस मिलाया है.
श्रृंगार रस
जन्म दिन का
था अवसर
पहुंची श्रीमती कविराज
ब्यूटी पार्लर
लेप लगवाया
चमड़ी घिसवाई
जूडे की नई स्टाइल बनवाई
गजरा टांग नई साडी
नये ढंग से बंधवाई
गुनागुनाती घर आई
कविराज से बोली
बडे कवि बन अकड़े हो
हास्य रस में लिथड़े हो
सुनो सजनवा
देखो मुझे
प्रेरणा पाओ
श्रृंगार रस में आ जाओ
मुझे ... मेरे रूप को
सराहो
आज तक किसी ने
किसी को नहीं दी
ऐसी अछूती उपमा दे
इसका
मान बढाओ
कविराज ने
नयन भर
श्रीमती जी को देखा
कहा वाह वाह
क्या खूब लग रही हो
श्रीमती जी प्रेमल हुई
नयन मूंदे, मुस्काई
बोली और....आगे कहो न
कविराज बोले प्रिये
रूप तुम्हारा
अतिशय सुंदर
मेरे मन भायी हो
लग रही हो ऐसे
जैसे ब्लैक एंड व्हाईट
मुगलेआजम
नई टेक्नोलाजी से
नये रूप में
टेक्नीकलर
हो के आई हो
..................विजय प्रकाश
( कविराज.इन से साभार)